पतंजलि के अनुसार ध्यान की परिभाषा | Patanjali ke Anusaar Dhyan ki Paribhasha in Hindi

ध्यान क्या है

पतंजलि के अनुसार ध्यान की परिभाषा :-

प्रत्येक महापुरुषों के अनुसार ध्यान को अलग-अलग रूप से परिभाषित किया गया है और इनकी अलग-अलग परिभाषा ओं को मान्यता दी गई है यहां हम महर्षि पतंजलि ध्यान के बारे में क्या बताते हैं इस पर हम चर्चा करते हैं

जहां चित् को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एक तार चलना ध्यान है

व्याख्या-

जिस धेय वस्तु में चित् को लगाया जाए उसी में वृद्धि का एक तार चलना ध्यान है एवं चित् का एकाग्र हो जाना ध्यान कहलाता है

अर्थात एक ही तरह की वृत्ति का प्रवाह चलना उसके बीच में किसी दूसरी वृत्ति का ना उठना ध्यान कहलाता है

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को ध्यान लगाने के लिए संतुलन की आवश्यकता होती है उसे संतुलन का पालन करने वाला होना चाहिए जिसके जीवन में संतुलन नहीं है वह ध्यान को नहीं लगा सकता ध्यान लगाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह संतुलन का पालन करें तभी वह ध्यान लगाने मैं सफल होगा ध्यान लगाने से व्यक्ति मुक्ति के मार्ग की ओर अग्रसर होता है व्यक्ति शांत चित् होने लगता है व्यक्ति का शरीर हल्का होने लगता है

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