ज्ञान किसे कहते हैं ?

ज्ञान की व्याख्या क्या है ? कोई भी अच्छा बोल सकता है । अच्छा भाषण दे सकता है । यदि भाषा पर ठीक प्रभुत्व हो तो भाषण अच्छा हो सकता है । लेकिन विषय से चूकना नहीं चाहिये । मानव के हृदय को पकड़े रखना चाहिये , छोड़ना नहीं चाहिये । वाकपटु होना चाहिये । कितना याद हो … तो लोग कहेंगे अहा – हा … कितना ज्ञान है लेकिन वह ज्ञान नहीं है , जानकारी है ।

केवल बोलना बहुत बोलना , बहुत बोले तो कौन – सी नई बात पैदा हो गई ? पर भूल ऐसा मानिये नहीं करनी चाहिये । ज्यादा बोलना और सुन्दर भाषा से सभी पर प्रभाव डाल देना ज्ञान नहीं कहलाता ।

ज्ञान तो वह है जहाँ बिल्कुल अहंकार न हो । फिर तुम बोलोगे तो वाणी के फूल हो जायेंगे , पर अहंकार जरा – सा भी नहीं होना चाहिये ।

ईश्वर सबमें दिखना चाहिये । उनका नाम त्याग है फिर हमें वेद आयें तो भी ठीक न आयें तो भी ठीक , पर सबमें भगवान दिखे ।

जीवन में सरलता आये तो ज्ञान हो गया । आज मुझे या आपको अधिक जानकारी आती है तो सबको यह ज्ञान बहुत भारी बना देगा । शास्त्रों का ज्ञान वजनदार बना देगा ।

वैसे भी व्यक्ति को बोलने का अभिमान जहाँ बहुत होता है वहाँ भगवान ही छुड़ा सकता है । यह कठिन है । ज्ञान तो वह है जहाँ बिल्कुल अहंकार न हो ।

अभिमान की गद्दी पर ज्ञान नहीं बैठता । प्रत्येक में ईश्वर दिखना चाहिये । सब आ जायें पर भगवान दिखाई न दे । सब तुच्छ दिखाई दे । गुरू दिखे तो बहुत ही बड़ा अज्ञान कहा जाता है । अल्प दिखे तो समझिए कि अभिमान है , अज्ञान है । सबमें ब्रहमदर्शन करना ही ज्ञान है , बाकी सब तो जानकारी है ।

जानकारी और ज्ञान में अन्तर है । किसी को किसी विषय की जानकारी है । किसी विषय की जानकारी ज्ञान नहीं कहलाती । ज्ञान तो मुक्त है पर हमें थोड़ा – बहुत आ जाता है तो हम यह मान लेते हैं कि हम ज्ञानी बन गये ।
बंधन में डाले वह ज्ञान नहीं कहलाता । सा विद्या या विमुक्तये । ज्ञान तो मानव को मुक्त करता है । जेल में बन्द करके यह ज्ञान नहीं कहलाता ।

मेरा या आपका अहंकार बंधन में डालता हैं । अहंकार का अभाव ज्ञान की पहली शर्त है । मुक्त करे वह ज्ञान की दूसरी शर्त है । समदृष्टि पूर्वक ईश्वर करे वही सच्चा ज्ञानी है ।

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