प्राकृतिक पर्यावरण का महत्व

प्राकृतिक पर्यावरण का महत्व: हमारे चारों ओर का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता है। पूरे विश्व भर में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण पंच तत्वों से मिलकर बना है।

जैसे वायु अग्नि जल आकाश पृथ्वी यदि हमारे द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ ना रखा गया तो पृथ्वी पर रहना असंभव हो जाएगा।

अपने आसपास के आवरण को शुद्ध करना अधिक से अधिक पेड़ लगाकर वन्य संपदा को बचाना ही हमारा कर्तव्य है।

यदि अग्नि ना हो, जल ना हो, मिट्टी ना हो, वायु ना हो तो पर्यावरण का अस्तित्व ही नहीं है। पेड़ों के कारण ही हमें वायु मिलती है, ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है।

यदि वृक्ष ना हुए तो वर्षा होना भी असंभव है। अर्थात जल की कमी होना मनुष्य अपने जीवन यापन के लिए लगातार वृक्षों का कटाव कर रहा है।

अपनी सुविधाओं के लिए प्रकृति को क्षति पहुंचाना बहुत बड़ा अपराध है। इसीलिए हम सभी को अधिक से अधिक वृक्ष लगाने हैं।

प्रकृति से ही हमारी उत्पत्ति हुई है। प्रकृति ही पालन करता और विनाश करता है। प्रकृति ही पार्वती है।

मनुष्य को जिस प्रकार अपने बचाव की फिक्र रहती है। ठीक उसी प्रकार से प्रकृति की अमूल्य धरोहर को भी हमें बचाना होगा।

जितना विकास उतना विनाश यह कथन भले ही कटु है अपितु सत्य है। इसीलिए मनुष्य को वन्यजीवों वनों वनस्पति इन सभी को बचाना है।

नहीं तो इसके परिणाम मनुष्य को भुगतने पड़ेंगे। इसीलिए अधिक से अधिक पेड़ लगाना और वन्य संपादक बचाना तो प्रत्येक मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए।

पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने पेड़ों की प्राण रक्षा के लिए चिपको आंदोलन में युवाओं को जोड़ने के लिए उन्होंने 25 मई 1974 को गढ़वाल की यात्रा शुरू की

जिसमें 700 किलोमीटर की यह यात्रा उन्होंने 54 दिन में पूरी की। सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के विरोध में उत्तरे और 74 दिन की ऐतिहासिक भूख हड़ताल की।

उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत से संघर्ष और बहुत से आंदोलन कराएं। चिपको आंदोलन उन्हीं में से एक है। सुंदरलाल बहुगुणा को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला है। सभी व्यक्तियों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और पर्यावरण को बचाना चाहिए।

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