पंचवटी में सोने का हिरण | Gold Deer in Panchavati

पंचवटी में सोने का हिरण

बात त्रेतायुग की है । जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास में थें। उनके साथ में उनकी पत्नी सीता तथा छोटा भाई लक्ष्मण भी थे। वह पंचवटी नामक जंगल में कुटीया बनाकर रहते थे।

एक दिन वहां से रावण की बहन सुर्पखा गुजरी। राम के पराक्रम और रुप को देखकर वह मोहित हो गयी थी। क्योकि इससे पहले भगवान राम खर दुषण जैसे पराक्रमी राक्षसो का वध कर चुके थे। वह भगवान राम से शादी के सपने देखने लगी।

लेकिन जब उसने अपना प्रस्ताव राम के आगे रखा । तो इन्होने साफ मना कर दिया। कहा मै पहले से शादी शुदा हूं। और यह मेरी पत्नी सीता है।

पंचवटी में सोने का हिरण
पंचवटी में सोने का हिरण

फिर वह लक्ष्मण के पास गयी। और शादी का प्रस्ताव रखा। लक्ष्मण ने भी स्वयं को शादी शुदा बताया। उसे मना दिया। लेकिन वह न मानी और फिर से राम के पास आयी।  उन्होने उसे स्पष्ट शब्दो में मना कर दिया।

वह फिर से लक्ष्मण के पास गयी। और मना करने के बाबजूद जिद करने लगी। वह एक भंयकर राक्षसी थी ।और अपना राक्षसी स्वभाव दिखाने लगी। तब लक्ष्मण ने क्रोध में आकर उसकी नाक काट दी।

सुर्पखा रोती विलकती अपने भाई रावण के पास गयी।और सारी बाते कह सुनायी। वह अब भगवान राम से बदला लेने की सोच रही थी। इसलिये उसने रावण को सीता के विषय में बताया। कि वह बहुत ही सुन्दंर है। और रावण जैसे प्रतापी राजा की पत्नी बनने लायक है। उसने रावण को सीता के अपहरण के लिये प्रेरित किया। और वह मान गया।

रावण उस समय का सबसे पराक्रमी और विद्धान राजा था। उसने मारीच को माया जाल से सोने का हिरण बनने को कहा। और  योजना के अनुसार पंचवटी के आस पास भेज दिया। जैसे ही वह सोने का हिरण कुटीया के पास आया।

सीता की नजर इस पर गयी। और वह इस अति सुन्दंर हिरण पर मोहित हो गयी। और राम से इस हिरन को मारकर लाने के लिये कहने लगी। कि इसकी खाल हमारी कुटिया में अति सुंदर लगेगी।

राम के बार बार मना करने पर भी सीता न मानी। जिस कारण राम को इस साने के हिरन को मारने के लिये जाना पडा। राम अपने छोटे भाई को सीता की देखरेख करने को व कुटीया न छोडकर जाने को कहा।

जैसे वह इस हिरन के पीछे गये । वह धीरे धीरे  इनको जंगल की और कुटीया से दूर ले गया। जैसे ही राम ने इस  हिरन को तीर मारा वह जोर जोर से चिल्लाने लगा।  लक्ष्मण बचाव, लक्ष्मण बचाव , सीते,  सीते

यह सब सुनकर सीता माता घबरागयी और लक्ष्मण से राम की सहायता के लिये जाने को कहने लगी। लक्ष्मण ने माता को बहुत समझाया कि उनका कोई भी कुछ नही बिगाड सकता। यह किसी मायावी राक्षस की चाल है।

लेकिन सीता माता न मानी और लक्ष्मण को कसम देकर जाने के लिये विवश कर दिया। कुटिया से जाने से पहले लक्ष्मण ने माता सीता के चारो और एक लख्मण रेखा खीच दी थी । और कहा आप इस रेखा से बहार न आना। और भाई की सहायता के लिये चल दिये।

इसी बीच मायावी राक्षस रावण यहां एक साधु के भेष में गया। व भीक्षा मांगने लगा। माता सीता ने कहा में इस रेखा से बहार नही आ सकती। तो वह इसे साधु का अपमान कहने लगा। और खाली हाथ वापस जाने की बात कहने लगा।

माता सीता इसके झासे में आ गयी और वह स्वयं ही इस रेखा से बहार आ गयी। जैसे वह इस रेखा से बहार आयी रावण ने सीता माता का अपहरण कर दिया । और पुष्पक विमान से इन्हे लंका ले गया।

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