चित्त की वृत्तियाँ क्या है
महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र के समाधि पाद के छठे सूत्र में पांच प्रकार की चित्त की वृत्तियाँ बताई है। जिनका निरोध एक योग साधक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसा कि उन्होंने दूसरे सूत्र में कहा है कि
श्लोक – योगश्चितवृतिनिरोधः
यानि चित की वृत्तियों का निरोध हो जाना ही योग है
अर्थात चित्त की वृत्तियों का समाधान निकालना अत्यंत आवश्यक है यानी कि जब चित्त की वृतियां समाप्त हो जाती है उसे चित्तवृत्ति निरोध कहते हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने चित्त की पांच वृत्तियां बताई है। प्रत्येक वृत्ति के दो भेद बताएं है। जिन्हें क्लिष्ट और अक्लिष्ट नामों से जाना जाता है।
क्लिष्ट वृत्तियाँ योग साधना में बाधक होती है तथा अक्लिष्ट वृत्तियाँ योग साधना में सहायक होती है। एक साधक को इनको सही ढग से समझने के निर्देश दिए गए है। एक साधक को पहले अक्लिष्ट वृतियो से क्लिष्ट वृतियो को हटाना चाहिये और फिर अक्लिष्ट वृतियो का निरोध करने की कोशिश करके योग सिद्ध करना चाहिये।
चित्त की वृत्तियाँ
श्लोक – प्रमाणविपर्यविकल्पनिद्रास्मृतयः ।।६।।
अर्थात – प्रमाण, विपर्य, विकल्प, निद्रा, स्मृति ये पांच वृत्तियाँ है।
१ – प्रमाण –
श्लोक – प्रत्यक्षनुमानागमा: प्रमाणनी: ।।७।।
प्रमाण वृत्ति को तीन भागों में बांटा गया है।
- प्रत्यक्ष प्रमाण— मन बुद्धि वह इंद्रियों कि समझ में आने वाले जितने भी पदार्थ हैं उनका जब भी किसी के साथ बिना किसी रूकावट के संबंध बन जाता है और भ्रम उत्पन करने वाला ज्ञान हो जाता है उस प्रत्यक्ष अनुभव से होने वाली वह प्रमाण वृत्ति है।
- अनुमान प्रमाण – जब हमें किसी युक्ति के द्वारा प्रत्यक्ष दिख रही किसी वस्तु के अप्रत्यक्ष रूप का ज्ञान होता है उसे अनुमान प्रमाण वृति कहते है।
जेसे – नदी में बढे पानी को देख कर कही दूर वर्षा का अनुमान लगाना।
- आगम प्रमाण – वैद, शास्त्र और महापुरुषों के द्वारा कहे वचनों को आगम प्रमाण कहते है।
२ विपर्य –
श्लोक – विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रपप्रतिठम्: ।।८।।
किसी भी वस्तु कीे विषय में मिथ्या ज्ञान हो जाना जो वास्तव में उसके स्वरुप में विदयमान नही है।
यानि कि किसी भी बात या वस्तु के वास्तविक रुप को न समझकर उसे कुछ और ही समझ लेना विपर्य वृति है।
३ विकल्प –
श्लोक – शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्प: ।।९।।
शब्दो के ज्ञान के द्धारा किसी अविदयामान वस्तु की कल्पना कर लेने वाली विकल्प वृति है।
४ निद्रा-
श्लोक – अभावप्रत्ययालम्बना वृतिर्निद्रा: ।।१॰।।
जब मनुष्य को किसी भी विषय का ज्ञान नही रहता है मात्र ज्ञान की कमी का अभास होता है ति है। की कमी का ज्ञान निद्रा वृति में होता है।
५ स्मृति –
श्लोक – अनुभूतविषयासम्प्रमोष: स्मृति: ।।११।।
पूर्व में अनुभव किये विषयो का जो संस्कार में भरे है किसी कारण के मिलने से पुन क्रियानवयन में आना ही स्मृति वृति है।
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